हम नीचे से और नीचे आ रहे हैं ।।
उनके माधे पर अहंकारी कालिक छा रही है ।
हमारे माथे पर निरंकारी शक्ति आ रही है ।।
लोग पक्के मकानों को तोड़कर
टावर वाली कोठियाँ बना रहें हैं ।
हम कच्चे कोठों को हटाकर ।
दूर खेत मे तम्बु लगा रहे हैं ।।
मै जानता हूँ कि मेरी सच्चाई को पढ़कर
तुम बुरी तरह से हँसोगे ।
लेकिन याद रखना
आज जितनी बुरी तरह से हँसोगे
कल उतनी ही बुरी तरह से
किसी नये पचड़े में फँसोगे ।
जब एहसास हो कि मैं हँसा धा
तो ही फँसा था ।
तब दलालों को लाखों रूपये
देने के बजाय निरंकार को याद करना ।
हाॅस्पिटल ,थाना हो या पचडा
सबसे अपने आप को बाहर पाओगे ।।
मास्टर मुखत्यार सिंह करनावल अलवर राजस्थान
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