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11.05.2021
दोस्तों लिखने का शौक तो मुझे बचपन से ही था लेकिन
व्यस्क होते ही मैं अपनी रोजी-रोटी कमाने में व्यस्त
हो गया था । और किताबें पढ़ने का शौक भी मुझे बचपन
से ही था राम चरित्र मानस , महाभारत व पंजाबी साहित्य
की बहुत सारी किताबें व अंग्रेजी साहित्य में
विलियम शेक्सपियर को भी मैंने बहुत पढ़ा है ।
लेकिन मैं कम्प्यूटर चलाना नहीं जानता था
और ना ही मेरे पास कोई एन्ड्रोएड फोन था ।
हालांकि ज्यादातर लोग उस समय एन्ड्रोएड फोन
पर इन्टरनेट का प्रयोग करते थे ।
लेकिन मुझे बी बी सी रेड़ियो और वाॅइस आॅफ अमेरिका
रेड़ियो वॉशिंगटन डी सी का हिन्दी रेड़ियो प्रसारण सुनने का
शौक बचपन से ही अर्थात 1996 से ही था ।
वाॅइस आॅफ अमेरिका रेड़ियो वॉशिंगटन डी सी का हिन्दी
रेड़ियो प्रसारण 2008 में बन्द कर दिया गया था जिसका
मुझे बहुत दुख हुआ था । प्रस्तुतकर्ता अशोक सरीन और
ममता सिंह की आवाजें आज भी मेरे कानों में गूँजती रहती हैं ।
मेरी इन्टर नैशनल न्यूज जानकारी की यह एक
अपूरणीय क्षति थीं जिसे आज तक भी भरा नहीं जा सका है ।
लेकिन फिर भी इस दुखद घड़ी में बी बी सी रेड़ियो की
हिन्दी उर्दू और अंग्रेजी न्यूज सेवा मेरे साथ बनी हुई थी
जो कि एक सच्चे मित्र की तरह हमेशा मेरा साथ
निभा रही थी । मैं बी बी सी रेड़ियो सुबह शाम सुनता था
और इसलिए अपने आपको एन्ड्रोएड फोन का प्रयोग करने
वालों से बेहतर समझता था और अपने ऊपर गर्व करता था
जो कि आज भी करता हूँ । फरवरी 2015 में मैंने बी बी सी
रेड़ियो पर एक सनसनी व दिल दहला देने वाली खबर सुनी
कि एक प्रसिद्ध बंगलादेशी अमेरिकन ब्लाॅगर अविजीत राॅय
की दिन दिहाड़े ढाका में कुछ कट्टर इस्लामिस्ट्स द्वारा बड़े
जघन्य तरीके से हत्या कर दी गयी ।
और " बंगलादेश में क्यों हो रही है ब्लाॅगर्स की हत्याँए ? "
इस टाॅपिक पर बी बी सी हिंदी रेड़ियो ने एक रिपोर्ट
प्रस्तुत की । यकीनन यह खबर अच्छी नहीं थी लेकिन
ब्लाॅगर्स , ब्लॉग और ब्लॉग राइटिंग यह शब्द मेरे कानों
ने पहली बार सुने थे ।
उसी दिन मुझे विश्वास हो गया था कि ब्लाॅगिन्ग करना लेखनी
के विषय में एक बहुत प्रभावशाली तरीका है ।
उसके बाद जब कभी मेरे कान कहीं पर भी ब्लॉग शब्द
सुनते तो मैं चौंक जाता था और कई बंगलादेशी ब्लाॅगर्स
की हत्याओं का दृश्य मेरे सामने आ जाता था ।
दोस्तों इस जघन्य कृत्य को कभी भी स्पोर्ट नहीं किया
जा सकता है । लेकिन कट्टर इस्लामिस्ट्स की
धमकियों के बावजूद भी ब्लाॅगर्स निडर होकर खुले मन से लिख
रहे थे । लेकिन आज यह लेख लिखने से पहले मैंने वेबसाइट
पर अविजीत राॅय के उस लेख "Virus of Faith"
अर्थात "आस्था का जहरीला कीड़ा" को पूरा पढ़ा जिसमे
वो बड़े कठोर शब्दों में कट्टर इस्लामिस्ट्स के खिलाफ़
लिख रहे थे और उन्हें खुले मन से चुनौती दे रहे थे ।
जिसका नतीजा हमारे सामने है ।
दोस्तों ये पत्रकार और ब्लाॅगर्स सही लिख रहे थे या गलत मैं
इस विषय पर नहीं जाना चाहता ।
लेकिन एक बात सिद्ध हो गयी की लेखक कभी मरते नहीं
वो अमर हो जाते हैं ।
लेकिन दोस्तों मैं अपनी लेखनी में हमेशा ही नाजुक शब्दों का
प्रयोग करूँगा । यह कोई डर नहीं बल्कि मेरी शिक्षा दिक्षा ही
सुन्दर व नाजुक शब्दों को लिखने व बोलने में प्रयोग करने के
लिए हुई है । कोशिश करूँगा की मेरी लेखनी से किसी भी
वर्ग विशेष व धर्म सम्प्रदाय को कठोर शब्द पढ़ने को ना मिलें।
और दोस्तों मैं आस्तिक हूँ नास्तिक नहीं..........12.05.2021
जारी है ................By Mukhtyar Singh karnawal
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