Wednesday, March 16, 2022

मुखत्यार सिंह करनावल अलवर राजस्थान की जीवनी Autobiography

 लेखक 

मुखत्यार सिंह करनावल अलवर राजस्थान 

तारीख = 17.03.2022

1...(  मेरे दादाजी व पिताजी और माता के जन्म स्थानों 

               व उनके जीवन के बारे में  )

खुश रहने के ढूँढता हूँ बहाने 

वरना जिन्दगानी है दुखों की कहानी

मेरा जन्म गाँव साँखला  , पोस्ट बहाला (M I.A)

तहसील रामगढ़  जिला  अलवर  राजस्थान में 

करीब  1981 में जनवरी में हुआ था ।

माता जी अक्सर बताती हैं कि लोहड़ी माँगने वाले घर पर नहीं आये थे क्योंकि 21 दिन तक नवजात शिशु के पास ताबीज़ आदि ले जाने का परहेज किया जाता है क्योंकि इससे नवजात शिशु को भी खतरा रहता है और ताबीज़ या कोई मंत्रित धागा भी खराब हो जाता है । अर्थात नवजात बच्चे और ताबीज़ दोनों को नुकसान होता है । लोहड़ी हमेशा 13 जनवरी को ही आती है ।

विक्रमी सम्वत के पौष मास के शुरुआती दिनों में पौष भास की दो या तीन तारीख  मंगलवार को सुबह आठ से दस बजे के बीच  घोर सर्दियों में मेरा जन्म हुआ था । ऐसा नहीं है कि हमारे पिता जी ने हमारी जन्म तिथि नहीं लिखी थी । चारों भाई बहिनों की जन्म,तिथि उन्होंने वार सहित लिखी थी । लेकिन जब मेरे पिताजी पागल हुए थे तो उन्होंने सब जला दी थी । पहली बार मेरे पिताजी तब पागल हुए धे जब मुझसे छोटे भाई मंगल सिंह का जन्म हुआ था । तब से लेकर अब तक वह करीब बीस बार पागल हो चुके हैं । जिनका कई बार ईलाज जयपुर के पागल खाने से व एक बार आगरा के पागलखाने से व अब कई बार अलवर के राजीव गांधी सामान्य चिकित्सालय के मानसिक रोग विभाग से हुआ है । और अभी भी आठ दिन पहले ही  मेरी माता जी उनके मानसिक रोग की दवाई अलवर के सरकारी अस्पताल से लेकर आयी हैं । वो बात अलग है कि अब उन पर काबू पाना पहले की तुलना मे आसान होता है क्योंकि बूढ़े और जवान की ताकत में फर्क होता है ।

खैर  , मेरे दादाजी शंकर सिंह वालिद गुलाब सिंह 1947 में भारत पाकिस्तान विभाजन के दौरान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के जिला साईवाल  Sahiwal जिसे मिन्टकुमरी Montgomery  जिला भी कहते हैं के गाँव 80 -- 79 अर्थात अस्सी -- उन्यासी से आये थे ।  यह गाँव  साईवाल शहर से  मात्र तीन--चार किलोमीटर  दूरी पर ही है । यह बात मैंने तीन साल पहले हमारी व्योवॄद्ध बुआ जी नाड़का गाँव निवासी अमरो कौर पत्नि सरदार लक्ष्मण सिंह से पूछी थी जो की पाकिस्तान में 13 --  14 साल की थी । आज से ढाई साल पहले उनका स्वर्गवास हो चुका है । और यही पता आज 27.03.2022 को अपनी वृद्ध व सगी बुआ करतारो कौर पत्नि स्वर्गवासी लाल सिंह से पूछी है । यह साईवाल जिला लाहौर से 180 किलोमीटर की दूरी पर लाहौर व मुल्तान के बीच में पड़ता है ।

मेरे पड़दादा गुलाब सिंह के तीन पुत्र थे जो कि मेरे दादाजी हुए ।

1...शंकर सिंह  (भगत ) 

2...चम्पा सिंह अर्थात चम्बा सिंह 

3...सुबा सिंह 

 

पाकिस्तान से आने के बाद मेरे दादाजी व पड़दादा जी  पहले हरियाणा के रोहतक के पास चाँघ गाँव में रहे जहाँ पर मेरे पिताजी का जन्म हुआ था ।

मेरे पिताजी के जन्म के बाद जल्दी ही मेरी दादी जी का स्वर्ग वास हो गया था । मेरे पिताजी कुल चार भाई बहन थे । जो उन चारों को माँ का प्यार नहीं मिला था । 

बड़ी बहन अर्थात मेरी बुआ करतार कौर हैं जो खैरियत से आज  23.03.2022 को भी जीवित हैं अतः हमारे ही गाँव में रहती हैं । 

दूसरे नंबर पर मेरे ताऊ करतार सिंह जी हैं जो वाहेगुरु की मेहरबानी से आज 23.03.2022 को भी ठीक-ठाक हैं ।

तीसरे नंबर पर मेरे ताऊ जी अवतार सिंह जी थे जिनका कुवारें रहते युवावस्था में ही इन्तकाल हो गया था ।

और चौथे नंबर पर मेरे पिताजी  जगतार सिंह जी हैं जो आज 

23.03.2022 को एक बुजुर्ग व कमजोर व मानसिक रोगी की हालत में हैं जो हमारे मना करने पर भी तीन दिन पहले हरियाणा में रेवाड़ी के पास बावल में कसौला चौक पर किसी के साथ जय गुरुदेव आश्रम में घूमने व सेवा करने चले गये हैं । जिन्हे लाने के लिए कल मेरी माता जी जा रही हैं ।

माँ मर गई धी और बाप एक भगत आदमी धा इसलिए चारों बहिन भाईयों का जीवन भी दुख में और जगह जगह भटकते हुए गुजरा ।

अतः कोई भी बच्चा स्कूल की शक्ल नहीं देख सका ।


मेरे पड़दादा कुछ रिश्तेदारों के साथ राजस्थान के अलवर जिले के टपूकडा कस्बे से काफी दूर भलेसर गाँव में आकर बस गये थे ।

जहाँ पर राजस्थान सरकार द्वारा हमको पाकिस्तान से आये शरणार्थी मानते हुए कस्टोडियन की जमीन अलोट हुई थी ।


30.09.2022 की कलम 

भलेसर गाँव मुस्लिम बहुल अर्थात मेवात क्षेत्र था और 

 



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